उत्तराखण्ड के शहीदों ने अपने सोर्य, साहस, बीरता और पराक्रम से पूरे देश का नाम रोशन किया है। ऐसे ही बीर सपूत थे टिहरी के गबर सिंह नेगी। प्रथम विश्व युद्व के दौरान गबर सिंह ने अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुये जर्मन सैना के छक्के छुड़ाये और लड़ते लड़ते बीर गति को प्राप्त हो गये। मरणोंपरान्त उनको विक्टोरिया क्रास से नवाजा गया। टिहरी के चम्बा में उनके नाम पर लगने वाला मेला कोरोना संक्रमण काल की वजह से सादगी के साथ मनाया गया।
चम्वा के पास मंज्यूड़ गांव के गवर सिंह 1912 को रायल गढवाल लंैसडोन में भर्ती हुये। प्रथम विश्व युद्व के दौरान जब ब्रिटिश सैना जर्मन सेना के सामने टिक नही पा रहे थी तव द्वितीय गढवाल राइफलस की मदद ली गई। इसकी कमान गबर सिंह को सौंपी गई। गबर सिंह ने कई जर्मनियेंा को मार कर और कइयों को आत्मसर्मपण के लिये बाध्य कर दिया। उनकी याद में हर साल लगने वाले इस मेंले में गढ़वाल राइफल के अधिकारियों ,जवानों, सहित स्थानीय लोग बड़ी संख्या में भागीदारी करते थे, लेकिन दो सालों से इस मेले को सादगी के साथ मनाया जा रहा है।
10 मार्च 1915 को गढवाल राइफल्स ने न्यू चैपल लैंड पर कब्जा किया और 350 जर्मन सैनिको ने आत्म सर्मपण किया। इस युद्व में सौर्य और पराक्रम दिखाते हुये गबर सिंह शहीद हो गये। उन्हे मरणोपरान्त विक्टोरिया क्रास सम्मान दिया गया। वह पहले भारतीय सैनिक हैं जिन्हे मरणोपरान्त महज 21 साल की उम्र में यह सम्मान मिला। इस मेले में स्थानीय युवकों की भर्ती होती थी लेकिन पिछले कुछ सालों से यह भर्ती भी बन्द कर दी गई।
इस बार चम्बा पंहुचे सैनिक कल्याण मंत्री गणेश जोशी ने वीसी गब्बर सिंह की मर्ति पर पुष्पचक्र अर्पित किये।
प्रथम विश्व युद्व में गवर सिंह के साथ चंबा के नजदीकी गांव स्यूटा और जड़धार गांव के 52 सैनिक भी शहीद हुये थे। लैंसडोन स्थित गढवाल राइफल्स के मुख्यालय में गबर सिंह की मूर्ति के सामने ही सैनिक देश सेवा की प्रतिज्ञा लेते हैं। उनकी याद में हर साल यह मेला आयेजित होता है। इस बार सैनिक कल्याण मंत्री ने इस मेले को राजकीय मेला घोषित करने, चम्बा सुरंग का नाम वी सी गबर सिंह ने नाम पर करने और उनके गांव मज्यूड़ में संग्रहालय बनाने की बात कही।
सूर्य प्रकाश रमोला टिहरी।