हरिद्वार जमीन घोटाले की जांच पूरी ,कई अधिकारी निलंबित

यह मामला उत्तराखंड के प्रशासनिक इतिहास में एक गंभीर और अत्यंत संवेदनशील भ्रष्टाचार प्रकरण के रूप में सामने आया है। हरिद्वार में 54 करोड़ रुपये के भूमि घोटाले को लेकर जिस प्रकार से वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों पर कार्रवाई हुई है, वह राज्य सरकार की “भ्रष्टाचार के प्रति शून्य सहिष्णुता” की नीति को दर्शाता है।

इस पूरे प्रकरण की मुख्य बातें संक्षेप में:


घोटाले की प्रकृति

  • हरिद्वार नगर निगम ने कूड़े के ढेर के पास स्थित, अनुपयुक्त और कृषि भूमि को 54 करोड़ रुपये में खरीदा।
  • जबकि बाजार मूल्य केवल 11 से 15 करोड़ रुपये के बीच आंका गया।
  • पारदर्शी बोली प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया और न ही भूमि की आवश्यकता को औचित्यपूर्ण ठहराया गया।

मुख्य आरोप और कार्रवाई:

अधिकारी का नामपदआरोपकार्रवाई
कर्मेन्द्र सिंहजिलाधिकारी (DM), हरिद्वारप्रशासनिक स्वीकृति में संदेहास्पद भूमिकानिलंबन
वरुण चौधरीपूर्व नगर आयुक्तबिना प्रक्रिया के प्रस्ताव पारित, वित्तीय अनियमितताएँनिलंबन
अजयवीर सिंहएसडीएमनिरीक्षण व सत्यापन में लापरवाहीनिलंबन
निकिता बिष्टवरिष्ठ वित्त अधिकारीसंदेह के घेरे मेंनिलंबन
विक्कीवरिष्ठ वैयक्तिक सहायकसंदेहास्पद भूमिकानिलंबन
राजेश कुमाररजिस्ट्रार कानूनगोनिलंबन
कमलदासमुख्य प्रशासनिक अधिकारीनिलंबन
वेदपालसंपत्ति लिपिकसेवा विस्तार समाप्तअनुशासनात्मक कार्रवाई

जांच और निगरानी:

  • अब यह मामला विजिलेंस विभाग को सौंप दिया गया है।
  • प्राथमिक स्तर पर नगर निगम के कई इंजीनियर और कर अधिकारी पहले ही प्रथम दृष्टया दोषी पाए गए और निलंबित किए गए।

राजनीतिक और प्रशासनिक संदेश:

  • मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने रिपोर्ट मिलते ही कार्रवाई की, जिससे यह संदेश गया कि राज्य सरकार प्रशासनिक भ्रष्टाचार को सहन नहीं करेगी।
  • यह उत्तराखंड का दूसरा मामला है जब किसी DM को पद पर रहते हुए निलंबित किया गया हो।