तर्पण क्यों और किसलिए -जानिए

तर्पण क्यों और किसलिए

तर्पण को छः भागों में विभक्त किया गया है- (1) देव तर्पण, (2) ऋषि तर्पण, (3) दिव्य मानस तर्पण, (4) दिव्य पितृ तर्पण (5) यम तर्पण (6) मनुष्य पितृ तर्पण।

देव शक्ति ईश्वर को वे महान विभूतियों है, जो मानव कल्याण में सदा निस्स्वार्थ भाव से प्रयत्नरत है। जल, वायु, सूर्य, चंद्र, विद्युत तथा अवतारी ईश्वर अंशों की मुक्त आभा एवं विद्या, बुद्धि, शक्ति, प्रतिभा, करुणा, दया, पवित्रता जैसी सत्प्रवृत्तियां सभी देव शक्तियों से आती हैं। ये यद्यपि दिखाई नहीं देती, तो भी इनके अनंत उपकार है। यदि इनका लाभ न मिले तो मनुष्य के लिए रह सकना भी संभव न हो सके। इनके प्रति कृतज्ञता की भावना व्यक्त करने के लिए देव तर्पण किया जाता है।

दूसरा तर्पण ऋषियों के लिए है। व्यास, वसिष्ठ, कात्यायन, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, चरक, सुश्रुत, पाणिनो दधीचि आदि ऋषियों के प्रति श्रद्धा की अभिव्यक्ति ऋषि तर्पण द्वारा की जाती है।

तीसरा तर्पण दिव्य मानवों के लिए है। जो पूर्णरूप से जीवन को लोक-मंगल के लिए अर्पित नहीं कर सके पर अपना व अपने परिजनों का भरण-पोषण करते हुए लोक-मंगल के लिए अधिकाधिक त्याग-बलिदान करते रहे, वे दिव्य मानव हैं। राजा हरिश्चंद्र, रंतिदेव, शिवि, जनक, पांडव, शिवाजी, प्रताप, भामाशाह, तिलक, गोखले, गांधी जैसे महापुरुष इसी श्रेणी में आते हैं।

चौथे दिव्य पितृ हैं। जो कोई बड़ी लोकसेवा व तपश्चर्या तो नहीं कर सके पर अपना व्यक्तिगत चरित्र हर दृष्टि से आदर्श बनाए रहे ऐसे लोग मानव मात्र के लिए अभिनंदनीय है। वे अपने गोत्र, वंश के न होते हुए भी अपनी महानता के कारण सभी के पूजनीय पितृ, सभी के लिए श्रद्धा के पात्र हैं। उनका अभिनंदन तर्पण के द्वारा किया जाता है।

पाँचवा यम तर्पण है। यम ब्रह्माण्डीय नियम के नियंत्रणकर्ता शक्तियों को कहते हैं। मरने के समय पश्चाताप न करना पड़े उसी प्रकार को अपनी गतिविधि निर्धारित करें तो समझना चाहिए कि यम को प्रसन्न करने तर्पण किया जा रहा है। राज्य शासन को भी यम कहते हैं। अपने शासन को परिपुष्ट एवं स्वस्थ बनाने के लिए प्रत्येक नागरिक को जो कर्तव्यपालन करना है, उसका स्मरण भी द्वारा किया जाता है। अपने इंद्रियनिग्रहकर्ता एवं कुमार्ग पर चलने से रोकने वाले विवेक को भी यम कहते हैं। इसे भी निरंतर पुष्ट करते चलना हर भावनाशील व्यक्ति का है। इन कर्तव्यों को स्मृति यमतर्पण द्वारा की जाती है।

छठा मानव पितृ तर्पण है। इसमें अपने परिवार से संबंधित दिवंगत नर-नारियों का नंबर आता है- (१) पिता, बाबा, परवावा, माता, दादी, परदादी (२) नाना, परनाना, बूढ़े पहनाना, नानी, परनानी, बूढ़ो परनानी (३) पत्नी, पुत्र, पुत्री बाचा, ताक, माता, भाई, बुआ, मौसी, बहन, सास, ससुर, गुरु, गुरु-पत्नी, शिष्य, मित्र। ये तीन वंशावलियाँ पारिवारिक तर्पण के लिए हैं।

जीव की अंतिम इच्छाओं के अनुसार परिवर्तित जीन्स जिस जीव के जीन्स से मिल जाते हैं, उसी ओर वे आकर्षित होकर वही योनि धारण कर लेते हैं। ८४ लाख योनियों में भटकने के बाद वह फिर मनुष्य शरीर में आता है। गर्भोपनिषद् में इस बात की पुष्टि हुई है

नानायोनिसहस्राणि दृष्ट्वा चैव ततो मया । आहारा विविधा भुक्ताः पीताश्च विविधा स्तनाः ॥ स्मरति जन्ममरणं न च कर्म शुभाशुभं विन्दति ॥

गर्भोपनिषद (४)

गर्भस्थ प्राणी सोचता है कि हजारों पहले जन्मों को देखा जाता और उनमें विभिन्न प्रकार के भोजन किए, विभिन्न योनियों के स्तन पान किए। अब जब गर्भ से बाहर निकलूंगा, तब ईश्वर का आश्रय लूँगा। इस प्रकार विचार करता हुआ प्राणी करत बड़े कष्ट से जन्म लेता है, पर माया का स्पर्श होते ही गर्भज्ञान हैं। भूल जाता है, शुभ-अशुभ कर्म लोप हो जाते हैं। मनुष्य फिर मनमानी करने लगता है और इस सुरदुर्लभ शरीर के सौभाग्य को भी गँवा देता है।

राकेश जायसवाल
सामाजिक मनोविज्ञान विशेषज्ञ, मनोवैज्ञानिक, हीलर व आध्यात्मिक परामर्शदाता, हरिद्वार (भारत)