निरंजनी अखाड़े में होने वाले पट्टाभिषेक मामले में नया मोड़-प्रज्ञा नंद महाराज को आचार्य महामंडलेश्वर पद से हटाया

हरिद्वार ब्यूरो

14 जनवरी को हरिद्वार के निरंजनी अखाड़े में होने वाले पट्टाभिषेक मामले में नया मोड़ आ गया है। पट्टाभिषेक से पहले निरंजनी अखाड़े के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी महाराज ने स्वीकार कर लिया कि 2019 में उन्होंने प्रज्ञानानंद महाराज को निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर पद पर पट्टाभिषेक किया था। लेकिन आज सुबह 11 बजे उन्हें इस पद से हटाने के साथ ही आचार्य महामंडलेश्वर पद से हटा दिया गया। लेकिन उनके इस बयान से ये साफ हो गया है। कि प्रज्ञानानंद महाराज निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर पद पर तैनात है। आपको बता दे कि 14 जनवरी को दक्षिण काली पीठाधीश्वर कैलाशानंद ब्रह्मचारी महाराज का निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर पद पर पट्टाभिषेक किया जाना है। लेकिन उससे पहले प्रज्ञानानंद महाराज सामने आ गए है। और उन्होंने पत्रकारों से वार्ता करते हुए खुद को निरंजनी अखाड़े का आचार्य महामंडलेश्वर पद पर बताते हुए इस पट्टाभिषेक को नियमो के विरुद्ध बताया हैं। उन्होंने इस मामले को कोर्ट में चुनौती देने तक की बात कही हैं। लेकिन निरंजनी अखाड़े के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी महाराज ने सोमवार को 11 बजे प्रज्ञानानंद महाराज को अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर पद से हटाते हुए उन्हें अखाड़े से भी निष्काषित कर दिया हैं। नरेंद्र गिरी महाराज ने कहा कि प्रज्ञानानंद आचार्य महामंडलेश्वर बनने के बाद निरंजनी अखाड़े में ही नही आये और न ही अखाड़े के किसी संत से मिले। उन्होंने ये भी कहा कि प्रज्ञानानंद महाराज इस पद के लिए अयोग्य है। उन्होंने अखाड़े की परंपराओं के विरुद्ध अखाड़े की छवि को खराब किया है। उन्हें ये पद सौंपने की उनसे सबसे बड़ी गलती हुई है। इसलिए उन्हें अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर पद से हटाने के साथ ही अखाड़े से भी निष्काषित किया जा रहा है। वही प्रज्ञानानंद महाराज ने नरेंद्र गिरी पर पलटवार करते हुए कहा कि उन्हें अपने निष्कासन का कोई लिखित पत्र नही मिला है। नरेंद्र गिरी महाराज उन्हें निष्कासन का लिखित कारण बताएं। नरेंद्र गिरी महाराज इससे पहले तो उन्हें आचार्य महामंडलेश्वर मानने को तैयार ही नही थे। उनको हटाये बिना उस पद पर किसी अन्य व्यक्ति की नियुक्ति नियमो के विरुद्ध है।
वो कानूनी प्रकिया का सहारा लेंगे और साधु संतों के सामने भी इस मामले को उठायेंगे। अब सवाल उठ रहे है। कि जब किसी पद पर पहले से ही कोई संत नियुक्त है। तो फिर कैसे उसी पद पर दुसरे संत को नियुक्त किया जा सकता है।

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